SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 971
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १३०) जैन जाति महोदय प्रकरण छछा. यह कहां तक पालन हो सकेगा, कारण जैसा पती का कर्तव्य है बैसा पत्नी का भी हो सकता है इसी कारण से व्यभिचारी सन्तान पैदा होती है और समाज से ब्रह्मचर्य व्रत दिन व दिन नष्ट होता जा रहा है कि जिस पर हमारी समाज का जीवन था गौरव था और महत्वता थी। दम्पति धर्म केवल एक पती से या अकेली पत्नी से नहीं सुधरता है परस्पर दोनो की प्रसन्नता, कुशलता एक दूसरे की सहानुभूती और आपस के प्रेम होने से दम्पति जीवन सुखमय बनता है जब पुरुष के सरीर में बिमारी होती है तब स्त्री दिलो जान से उसकी सेवा करती है वह ही बिमारी स्त्री को होती है तब पुरुष उसकी खबर तक भी नहीं लेता है क्या यह पुरुषों की निर्दयता नहीं है इसी से ही दम्पति जीवन क्लेशमय बन जाता है । आजकल कितनेक विचार स्वतंत्रता में नहीं पर विचार स्वछंदता में टांग फंसा कर त्रियों को यहां तक स्वतंत्र बनानी चाहते हैं कि यूरोपीयन लेडियों की पोषाक पहिना कर अपने साथ में सडकोंपर लिए फिरना और वह उनकी मर्जी के माफिक वर्ताव रक्खे । जैसे कि यूरोप में मीम साहब का वर्ताव है पर पुरुष उसमें दखल कर उनकी स्वतन्त्रता का खून न करे। बस, इसमें ही स्त्री जाति की उन्नति समझ ली है। परन्तु उन स्वछन्दवर्ग को पहिले यूरोप के स्वछन्दचारिणीयों का इतिहास पढ़ लेना चाहिए. कि इस स्त्री स्वछन्दताने पाश्चात्य देशो
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy