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जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा.
कार्य करेंगे तो भी कैसा कि जिस कार्य में पतियों को सेंकडों रूपैये दूसरों को देने पड़ते हैं उस कार्य की तो पर्वाह भी नहीं है और गोबरलाने जैसे इज्जत विहीन तुच्छ कार्य किया करती हैं भोजन समय माता की भांति वात्सल्यता तो दूर रही पर सुखसे एक ग्रास लेना भी विचारे पतिको मुश्किल हो जाता है। कारण भोजन समय ऐसे पुराणों को छोड़ देगी कि आज तो यह बस्तु नहीं है इतने दिन हो गए भाप सुनते ही नहीं तो कल रसोई कैसे बनाई जायगी । भोजन की तरफ देखिए ऋतु अनुकुल प्रति1 कुल का तो उन अज्ञान औरतों को मान ही नहीं है कि कौनसी ऋतु में कौनसा भोजन पथ्यापथ्य होता है जब भोजन की सामग्री घाटादाल मुशाला कई अर्से का कि जिसके अन्दर असंख्य प्रदर्श जीव पैदा हुए हो और ऐसे प्रतिकुल या जीव मिश्रीत भोजन करने से अनेक प्रकार के रोग पैदा हो जाते हैं बालमृत्यु की अधिकता का यह एक विशेष कारण है । शयनगृहमें जो महिला रंभा कहलाती थी आज वही राक्षसागियां बन बैठी है दिनभर में किया हुआ परिश्रम रात्री दो घंटा पत्नी के प्रेमसे दूर किया जाता था पठित औरतों अपने पति को रंजन कर उसके खून को बढाती थी आज बेही औरतें पति शयनगृह में आते ही कलह पुराण खोल बैठती है कि आज तो सासुजीने ऐसा कहा एवं देराखी, जेठाणी, नन्द आदि दिनभर की कर्मकथा इस कदर छोड़ देती है कि विचारे पतिका खून और भी भस्म हो जाता है अगर पतिके पहिले पत्नी सो जाये तो उसरोज पतिका मान्य समझना | रूप