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________________ दम्पति जीवन. ( १२३ ) यौवन लावण्य श्रृंगार नृत्य और पतिरंजन तो उन रंभाओ के साथ ही गया । आजके पतियों के हृदय देखे जाय तो कोलसे हो रहे हैं जो महिलाएं धर्म की सहायक बतलाई जाती थी माज वे पोरते धर्मतत्व को तो भूल बैठी है कितनीक मंदिर जाती है प्रतिक्रमण करती है पर उनको यह ज्ञान नहीं है कि इन क्रियाओंका क्या मतलब है केवल तोते वाला पाठ रटलिया करती हैं यह धर्म नहीं परएक किस्मका व्यसन है पतिके धर्मकार्य मे सहायता के बदले अनेक बिघ्न उपस्थित करदेती है अतिथी सत्कार करना तो दूर रहा पर बाबा योगी भोपा भखड़ा मुल्लों फकीरों और गुसाइयों के डोरे मादलिये छुमंत्रादि में ही सब कुछ समझ रक्खा है जिन महिलामों में पृथ्वी सदृश सहनशीलता=क्षमा बतलाई है वह तो सीता सावत्री दमयन्ति और अंजनाके साथ ही गई जरा सा कहा सुना तो विचारे पतिकी तो मानों कम्बख्ती भाई, एकेक के बदले मैदान में अनेक सुनादिये जाते हैं अगर इब्रत रखने को पति चुप रह जाय तो अच्छा नहीं तो और भी बेइज्जत की जाती है इत्यादि। एक समय भारत अपने सती स्त्रीसमाज के लिए दूसरे देशों की अपेक्षा अपना मस्तिष्क उन्नत रखता था, उन के गुणानुवाद स्वर्ग की सुरांगनाएं गाया करती थी माज उस स्त्रीसमाज का इतना पतन क्यों हो गया ? अाज वे मुखों की पंकी में क्यों गिनी जाती हैं भाज वे नीची दृष्टि से क्यों देखी जा रही है ? 'मदर इंदिमा' Mother India जेसी नीच पुस्तकाद्वारा उन
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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