SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 961
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१२०) जैन जातिमहोदय प्रकरण छट्ठा. समान कुल और सदाचार (२) उम्मर और अरोग्य शरीर (३) सचारित्र और समान धर्म (४) जीवन निर्वाह के योग्य प्राय । इन चार बातोंकी अवश्य तुलना करें। मगर अाजकल स्वार्थप्रिय माता पिता इन बातों पर ध्यान नहीं देते हैं प्रेम स्नेह लग्न तो दूर रहा पर देह लग्न की भी पर्वाह नहीं करते है जिसका ही फल है कि भाज दम्पति जीवन अशान्तिमय क्लेश कदाग्रह का घर बन गया है । जो स्त्रियों गृह देवियों अर्धाङ्गनाएँ सहचारीणियों और धर्मपत्नियों समझी जाति थी आज वही स्त्री वर्ग काम किडा का भुवन, भोग विलास की सामग्री, बच्चे पैदा करनेकी मशीन, रसोई बनानेवाली भटियारिण, गृह कार्य करनेवाली दो पैसों की दासी ए पैरों की जूती और गुलाम समझी जा रही है । इत्यादि स्त्री समाज पर आज जो अत्याचार गुजर रहा है, वह पूर्वोक्त अज्ञानता का ही फल है वास्तवमें स्त्री केवल मोजमजा के लिये कठपुतली नहीं है पर उनकी सहायतासे गृहस्थाश्रम और धर्म सुचारूरूपमें चलता रहे जिसके जरिये इस लोकमें सुख शान्ति और परलोक में दोनों का कल्याण हो. कुलीन खियो के लिये नीतिशास्त्रकारोंने बहुत ही अच्छा फरमाया है. कार्येषु मंत्री, करणेषु दासी । भोज्येषु माता, शयनेषु रंमा । धर्मेषु सहाया, चमया धरित्री। षद्गुण युक्तावविह धर्मपत्नी।। अर्थात् गृह राज्य चलाने में मंत्री के मार्फाक सलाह दें काम
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy