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(८) दम्पति जीवन और गृहस्थाश्रम.
पति पत्नी के विवाहसे दम्पति जीवन की शरुआत होती है और वह जीवन पर्यन्त रहती है इस लिये पूर्व जमाने मे उनके माता पिता संबन्ध करने के पहला खुब दीर्घ दृष्टि से विचार कर पूर्ण योग्यतासे ही अपनी संतान का संबन्ध किया करते थे पर भाजकाल प्रायः देखा जाता है कि गृहस्थाश्रम के स्थंभरूप दाम्पति के संबन्ध जोडनेमें इतना तो परावर्तन हो गया है कि मानव धर्म रूपी संस्कार की महत्वता प्रायः अभाव सी ही दीख पडती है। इतना ही नहीं पर इस महत्व पूर्ण कार्य को तो एक बच्चों का खेल ही समझ लिया है जैसे बच्चा रमत गमतमे ढींगले ढंगली का विवाह करते है इसी माफीक हमारे मातापिताओने ही उन बालको का अनुकरण करना सरू कर दिया है यह कितना दुःखका विषय है जिस संबन्ध पर अपने संतान का जीवन रचा जाता है उनकी इतनी लापरवाह ? पर भाप देखिये शास्त्रकारोंने लग्न दो प्रकार के फरमाए है. (१) देह लम (२) प्रेम स्नेह लग्न । पूर्व जमाने में स्वयंवरादि से स्नेह लग्न के साथ देह लग्न किया जाता था इतना ही नहीं पर उन लडके लडकियो को गृहस्थाश्रम रूपी संसार रथ के धौरी बनाने के पहिले चार बातें मुख्यतया देखी जाती थी और आज भी प्रेम स्नेह और सुखमय जीवन के लिए उन चार बातों की परमावश्यकता है इस लिए मात पितामों का सब से पहिला कर्तव्य है कि अपनी सन्तान का बग्न संबन्ध करने के पहिले (१)