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________________ बालरक्षण और माता का कर्तव्य. ( ११७ ) समाज सुधारके टेकेदारों कों इस सुवाक्यपर लक्ष देण चाहिये कि माता शिक्षक होनेपर हजार उपाय क्यो न किया जाय पर उनकी संतान का सुधारा होना मुश्किल नहीं पर सर्वेता असंभव ही है आजकल हमारी अशिक्षत माताओं अपने संतान का पालन पोषण करने में भी सग्माती है कारण उनके हाथो मे सोने के बाजुबंध और बंगड तथा रेशमी पौषाक और साबुसे रगड | हुआ शरीर का गमंड है जिससे अन्योन्य काम कि माफीक यह भी एक काम नोकरो के सुपर्द कर देती है अगर अपनी संतान का पालन करने में ही उनको शरम आती हो तो वह माता बने ही क्यो ? जब निज संतान पालन का ही यह हाल है तो दूसरे कामों की तो हम आशा ही क्यो रखे ? उन अपठित माताओ की तरफ से उन बालबच्चों को आशीर्वाद किस कदर से मिलता है वह तो उनके घरके तथा आसपास रहनेवाले पाडीसी ही जानते है कि एक दिन मेंकडो दुराशीष रूपी गालिये की वरसात हुआ करती है । उन बालबच्चों की मारपीट कि तरफ तो देखा ही नहीं जाता है कि वह किस कदर मारपीट करती है कितनेक बालक तो बिचारे अंगउपांग को भी खो बैठते है इत्यादि बालरक्षणकी दुर्दशा कहां तक लिखी जाया कारण इस बातको हमारी समाज के आबाल वृद्ध सब लोग अच्छी तरह से जानते है । आज हमारी समाजमें महा भयंकर बाल मरण और सुवा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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