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बालरक्षण और माताका कर्तव्य. ( १९५) और गलेमे फूल राखडी दोरा बन्धके सथे गुरुकी श्रद्धा उडादी और कब मसजीद भेरू भवानी खेलाजी खेतलाजी हडबुजी मादि आदि देवों के संस्कार डाल हमारे वीतराग जैसे देवोंसे प्रश्रद्धा करवाने का खास कारण हमारे मातापिताही है नाटक सीनामा और रंडिये के खेल तमास से व्यभिचारी बनानेवाले भी दूसरा नहिं पर बच्चोंके जन्मगुरु ही है जैसे दुर्व्यसन के संस्कार डाले जाते है वैसे सदाचार और धर्म के संस्कार बहुत कम डाले जाते है कारण न तो उनको मान्दिर उपाश्रय सदैव ले जाया करते है न गुरु महाराज का सत्संग करवाया करते है इस कारण न तो उनके अन्दर वि. नय विवेक सद्विचार देवगुरु व मातापितामो प्रति सेवा भक्ति सुश्रषा के संस्कार होते है । शरूसे पडे हुए बुरे संस्कार दूसरो को तो क्या • पर उनके मातापिताओ को ही कितने दुःखदायी होते है वह उनकी
आत्माही जानते है कबी कबी तो पुकारे किया करते है क्या करे छोरे मानते नहीं है दुःख दियाकरते है अब क्या करे ? यह किसके फल है ? यह बूरे बीज किसने बोये ?
आगे उन मावा और बालको के स्वास्थ्य कि मोर देखा जावें तो हृदय फाटके टुकडे टुकडे हो जाते है कहाँ वीर समाज की जिनके हुँकार मात्रसे भूमिकम्प उठती थी कहाँ आज निर्बल संतान कि वह स्वयं अपनाही रक्षण नहीं कर सके ?
- उनके धर्म संस्कार कि ओर तो, देखा जाय तो केवल नाम मात्र के जैन रह गये है न आत्मज्ञान न पाचार व्यवहार न क्रिया