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बालरक्षण और माताका कर्तव्य.
( १'३ )
न रहने के कारण वे अपनी राजधानी को लोट आए। इन की महारानी शिसोदिया राजकुमारी को जब मालूम हुआ कि पतिदेव समरांगण में पीठ दीखाके युद्ध छोड़ कर भाग आए हैं तब उसने कहा, मैं कायर पति का मुह देखना नहीं चाहती; ऐसा कह कर के किले के फाटक बन्द करवा दिए। कारण पूछने पर उत्तर दिया कि " यदि विजय प्राप्त कर जाएगें तो मैं उन की आरती उतारूंगी, यदि देवगती को प्राप्त हुए तो मैं भी सती हो जाऊंगी, पर कायर पति की पत्नि कहलाना राजपूतानी को पसन्द नहीं उस समय महाराजा की माता भी वहां मौजूद थी, उसने आत्मग्लानी लाकर दबे हुए स्वर से कहा कि बेटा ! उसमें तेरा अपराध नहीं है, तूं जब बालक था, तब तरं रोने पर बान्दीने तुझे चुप करने के लिए, अपने स्तन का दूध पिला दिया था, मैंने उसी समय
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तुझे ऊंधा
तब
भी मैं
बेटा !
लटका कर तेरे मुंहसे वह दुध निकाल दिया था डरती थी कि बान्दी का दूध तुझे असर नहीं कर देवें । आज वही हुआ, आज तुझे वही दूध युद्ध से भगा लाया, यदि तेने मेरा ही लगातार दूध पिया होता तो आज यह दिन मुझे देखना नहीं पड़ता । इस पर जरा ध्यान लगाके सोचना चाहिए ।
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अब हमारे मातापिता कि ओर से उन बाल बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा मिलती है बच्चा को टाइमसर खुराफ न मिलनेपर वह गेने लगता है । तब माता कहती है कि " नेना सुजा बागड़ बोले यांने खाजासी या लेजासी" यह डरपोक के पाठ तो सरूसे ही