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________________ ( १९२) जैन जाति महोदय प्रकरण य. सलाह मांगी कि इस बालक का भविष्य उच्च जीवन के निमित कैसी शिक्षा दी जाय ? महात्माने कहा " मावा ! इस का आधा शिक्षा समय तो व्यतित हो गया" गाता माश्चर्यमुग्ध हो चिन्तामें पड़ गई पर महात्माके तात्पर्य को न समझ सकी और निश्चय कर लिया कि मेरे बालक की आयुष्य अधिक नहीं है, महात्माने समझाया कि मेरे कहने का भावार्थ यह नहीं है; पर बालक जन्मते ही शिक्षण लेना प्रारंभ कर देता है जो जो भला बुरा उस को दृष्टिगत होता है वह गृहण कर लेता है । माता, पिता, कुटुम्ब परिवार के देखे हुए रहन सहन को वह कभी नहीं भूल सकता है, कोरे साफ कागज पर लिखा हुआ हर्फ मिटा कर यदि फिर से उसी कागज पर लिखना चाहेंगे तो पहिले जैसा साफ नहीं लिखा जायगा; उसी माफिक बालक के निर्मल हृदय पर पड़ी हुई छाप निकाल कर नये संस्कार आरोपित करना मुश्किल है । इस कारणसे ही मैंने कहा था कि जो शिक्षण ढाई सालमें इस बालकने प्राप्त कर लिया है, उस का बदलना असंभव है, इसीसे इस की आधी पढाई हो चूकी मैं मान रहा हूं। बच्चों को अपनी माता के दूध के बदले विलायती डिब्बों का दूध पिलाया जाता है दुषित दूध की क्या दशा होती है यह भी सुन लिजीए: जोधपुर नरेश महाराज यसवन्तसिंह बादशाहा शाहजहां की भाज्ञासे हिन्दु धर्मद्रोही औरङ्गजेबसे लड़ने को गए। अपने पास सैना
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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