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________________ बाल रक्षण (१०९) स्नाध-कटूक आम्ल-खाटा-मीटा चरकादि व अल्प और पति मोजन नही करना चाहिए केवल शीघ्र पाचन करनेवाला सात्वीक मोजन जो कि गर्भको पथ्यकारी हो उसीका ही सेवन करना लामदायि है गर्भवंती ओरतो को अति कठनाइयों का काम भी वर्जनिय है पर रक्षसी अपठित सासुओ उन विचारी पराधीन गर्भवंतीसे सात पाठ ओर नौ नौ मास तक पीसना पोवना दलना खण्डना पानीलाना वीलोनाकरना और रसोइ वगैरह सब घरके काम लिया करती है जिससे अव्वलतो उस गर्भका पतन ही हो जाता है कदाच अपने आयुष्यबलसे बचजावे तो वह इतना कमजोर होता है कि संसारमे कुच्छ करने काबिल नहीं रहता है । गर्भवती स्त्रियों को केदखाना के माफीक एकही स्थानमे रहना भी उचित नहीं है परन्तु वह अच्छी श्रावहाव कि जगहामे रहै और थोडी वहुत मैदान में गुमती भी रहै तांक उनका स्वास्थ्य अच्छा रहै । गर्भवंती को गर्भ हो वहांतक पति शय्याका भी त्याग करना चाहिये अर्थात् विषयभोगसे सर्वता वचना जरूरी है पर किसनेक प्रज्ञ दाम्पति विषय भोग की दुष्ट वासना के वशीभूत हो उस नियम को उल्लंघन कर कामक्रीडा मे रती मानते है इत्यादि पूर्वोक्त कारणो से उनकी संतान सत्वहीन कानी कुबडी लुली लंगडी कुरूप जनमसे रोगी कायर कमजोर निस्तेज और अल्पायुःवाली होती है इस लिये गर्भवंती ओरतो को हमेशों आनंदमंगल और शान्तिमे रहना चाहिये उनके पास अगर कोइ वात करे वो भी सदाचार सचारित्र और बीरता की करनी अच्छी है
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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