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साधारणकी दशा.
(१०७) समाजियों को देख रहे हैं कि वे अपने सहयोगियों को किस कदर सहायता दे रहे है उनके सुखमें सुखी दुःखमें दुःखी होना तो खास अपना ध्येय ही बना रखा है इसी कारण से वे लोग संख्या में व्यापार में हुनरोद्योगमें आगे बढते जा रहे हैं।
क्या हमारे समाज अग्रेसर धनाढ्य नेता अपने पूर्वजों की समाज सेवाको तो शायद भूल बैठे होंगें पर इतर समाजों से भी इस नसियत को सीखेंगे, धारण करेंगे ? और अपने स्वधर्मि भाइयों की महायताके लिए आज ही कम्मर कसकर तैयार हो जाएंगे ?
हमारी समाज के पास अभीतक द्रव्य बहुत है बुद्धिबल है व्यापार भी उनके हाथमें हैं अगर वे चाहें तो अपनी समाज के साधारण वर्ग को महायता देकर अपने समान बना सके हैं कारण उनको द्रव्यके जरिए विद्या हुनर व्यापार आदि कार्यों में लगा सके हैं। - मजनो ! समाज जीवित रहेगा तो सैकड़ो मंदिर बना सकेगा हजारों जिर्णोद्धार करा सकेगा उपधान, उज्जमना, वरघोडा,
और पद्वी महोत्सव करा मकेगा। अगर समाज ही नष्ट हो गया तो जैसे पूर्व और महाराष्ट्रीय आदि प्रदेशों में सैकड़ों जैन मंदिर शिवालय बनगए हैं, हजारों मूर्तियों पैरो तलें कुचली जा रही है; वैसे ही आपके कौड़ो लाखों रूपैये लगाकर बनाए हुए मंदिरों की एक दिन वही दशा होगी। अगर आपके हृदयमें जनमन्दिर, मूर्तियों की पूर्ण श्रद्धा हो, जैन शासनको जीवित रखना हो; जैन