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________________ (१०६) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. बुरी आदतें पड़ गई है कि साधारण जनका लाभ करना तो दूर रहा पर वे अपनी हिम्मतपर भुजबलपर अगर कुछ उन्नति करना चाहें तो भी उनके उन्नति क्षेत्रमें ऐसे रोड़े डाल देते हैं कि उनको दूसरीवार ऐसे कार्योंमें साहस करना भी मुश्किल हो जाता है; अर्थात् न्याति जाति या राजद्वारा उनके पैर तोड़ दिए जाते हैं कारण उनके पास सत्ता और घन है कि उनकी तरफमें बोलनेवाले गवाहियो देनेवाले भी बहुत मिलते है उस हालत में विचारी साधारण जनता की बुरी दशा यहाँतक होती है कि वह विचारे निर्दोष होनेपर भी उनको दण्ड के भागी बनादेते हैं। ___अगर जनहितार्थ पाठशाला हुन्नरशाला औषधालय चलता हो तो अप्रेसर लोग अपने घरके क्लेश कुसम्प को लाकरके उन संस्थात्रोंपर डालदेंगे, और कुछ स्वार्थ देकर अलग २ घडापार्टियों बना करके अनेक प्रकारसे नुक्शान पहुंचाने की कोशीष किया करते हैं; और इनको अपना परम कर्तव्य भी समझ रखा है। पूर्वोक्त कारणों से ही हमारे साधारण वर्ग की दुर्दशा हो रही है और इसी कारण से बहुतसे लोग धर्मसे पतित होते जा रहे हैं, और जैन संख्या कम होनेका मी खास कारण यही है कि हमारी समाज में साधारण और गरीब वर्ग को किसी प्रकारकी सहायता नहीं मिलती है उनका शारिरीक और मानसिक बल दिन वदिन हास होता जा रहा है भविष्यमें न जानें इसका क्या फल होगा ? आज हम इसाइयों, मुसलमानों, पारसियों, और आर्य
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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