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________________ साधारणकी सहायता. (805) " धर्मी भाइयों को हर तरह से सहायता करो, विधवाओं के लिए हुनरोद्योग शाला और बालबचों के लिए विद्यालय खोल दो इत्यादि । तालियों के गिड गिडाहट के साथ रजिष्टर में प्रस्ताव पास कर लेते है पर उसका फल क्या हुआ ? किसीने उन प्रस्तावों को कार्यरूप में परिणीत किया है ? सिंह क्षणभर के लिए गुफा से निकल गर्जना कर दिया करते हैं, पर गुफा में जापडने पर छ मास तक पड़ा ही रहता है यह ही हालत हमारे समाजनेताओंकी है। हमारे आचार्य देव और मुनि महाराज भी अपने उपाश्रय में ऊंचे पाटेपर बैठ कर के स्वधर्मीयों की सहायतार्थ महाराज कुमारपालं जगडुशाह खेमादेदाणी और वस्तुपाल तेजपाल की उदारता और स्वधर्मी भाइयों की सहायता का लम्बा चौड़ा व्याख्यान सुना देते है, और श्राद्धवर्ग जी महाराज ! तेहत वाणी ! ! करके सुन लेते है पर उनपर अमल करे कौन ? अगर करे तो भी विप्रीत • रूपमें कारण समाज श्रप्रेसर और धनाढ्यों के मगज में तो यह कीड़ा घुसा हुआ है कि अगर साधारण जनता की उन्नति हो जायगी तो अपनी पंचपंचायतीया रूप नादीरशाही चलनी वडी मुश्किल होगी; वास्ते इनको तो अपने पैरों के तले ही रखना अच्छा है । आप अनेक प्रकार के अयोग्य अन्याय करें न्याति जाति के कानून कायदे तोड़ दें अनमेल और वृद्धविवाह करले तो भी कुछ नहीं, कारण सत्ता तो उनके हाथमें है उनको कहनेवाला कौन अगर यह ही कार्य साधारण जनताने करलिया हो तो उनके लिए जमीन आसमान एक करदेते है, इन पंच पटेलों की ऐसी
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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