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(१०) न जाति महोहब प्रकरण कठा. की जाय तो समाज की संख्या अंगलियों पर गिनें जितनी रह जाती है, अतःएव साधारण जन का रक्षण पोषण करना अप्रेसरों का परम कर्तव्य है । आज जमाना कुछ अजब ढङ्ग का दिखाई देता है, जो लोग गरीबों के रक्षक थे वे ही आज उनके भक्षक बन बैठे है जो लोग साधारण जनता की उन्नति में अपना गौरव समझते थे; वे ही आज उन को अवनती की गहरी खाड में गिराने में ही अपना महत्व समझ रहे हैं । अगर साधारण गरीब वर्ग को अधोगति में पहुंचाने का शोभाग्य कहा जाय तो हमारे श्री मानों के ही हिस्से में सोभित होगा कारण जितनी कुरूढियों प्रचलित हुई है, वे सब धनाढयों के वहां से ही हुई है। विचारे साधारण आदमी तो उनके पीछे २ मरते है। पैसे की हालत तो उन बिचारों की पहिले से ही तङ्ग होती है फिर ऊपर से काज किरीयावर रूपी व्यर्थ खर्च की चाबूक उडते है अपनी उदरपूर्ति के लिए तो वे रातदिन पच रहे है इधर उधर भटकने पर भी कुटुम्ब का पोषण होना मुश्किल हो गया है । अपने बालबचों को अपठित रख कर, अपने गृह खर्च निर्वाहने के लिए उनको कोमल वय में भी धनाढयों की गुलामी करने को दिशावर भेजने पडते है। इत्यादि । आज जितनी जैन समाज में साधारण वर्ग की बुरी दशा है, उतनी शायद ही किसी समाज में होगी ।
हमारे जाति अग्रेसर पंच धनाढय लोग सभा सोसाइटियों और कमेटियों में एकत्र हो के सेटफार्म पर खडे होकर लम्बे २ भाषण देते है ' समाजसुधारकरो' फिजुल खर्च कम करो' स्व