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________________ (१००) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. उस समय आप की इज्जत कैसे रहेगी ? आप की क्या हालत होगी ? जरा नैत्र बन्ध कर इस को भी सोचिए। मृत्यु के पीछे जीमनवार ( औसर ) करना या जीमना शास्त्रकारोंने महा पाप और मिथ्यात्व बतालाया है तथापि हमारे धनाढय लोगोंने इतर जातियों के देखादेखी उस महा अधर्म को भी समाज में स्थान देकर उस के पैर खूब मजबूत बना दिए कि मृतक मनुष्य के कुटुम्बियों पर एक किस्म का काला टेक्स लगा दिया है, चाहे उन की स्थिति हो चाहे न हो पर उन सताधीश पंचो की राक्षसी आज्ञारूप तलवार के नीचे उन विचारे गरीबों को तो शिर झुकाना ही पडता है फिर चाहे वह अपनी हाट, हवेली माल जंगम स्थावर स्टेट लिलाम करें, चाहे ऋण ( कर्जा ) निकाले इतना ही नहीं पर देवद्रव्य से कर्जा देकर के भी नुका करवा कर पञ्च तो माल मिष्टान उडाने में ही अपनी महत्वता समझते हैं । अरे हत्यारो ! अरे राक्षसो !! तुमारे एक दिन के मिष्टान के लिए बिचारे उन गरीबों का कितना रक्त भस्म होता होगा, इसी फिजुल खर्च के कारण बिचारे साधारण लोग अपने बाल बच्चों को छोड कर दिशावर जाते हैं, वहां झूठबोलना, चोरियों करना, स्वामि द्रोहीपना, तथा धोखाबाजी करना । और कहीं भी पैसा न मिले तो अपनी लडकियों का भी लिलाम करना पडता है अर्थात् पूर्वोक्त अत्याचार सिर्फ फिजूल खर्चेने ही सिखाए हैं । पूर्व जमाने में हमारे पूर्वजोंने न्याति जाति में ऐसी शृंख
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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