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पोषाक खरचा. बात है कि फिर वे अपनी बहन बेटियों और मातामों के सामने स्नान किया करते हैं । जब पुरुष ही ऐसे निर्लज्ज बन जाते हैं, तब स्त्रियों का तो कहना ही क्या है ? इसी दुष्ट कुप्रथाने नौवाड विशुद्ध ब्रह्मचर्य व्रत पालन करने वाली समाज में व्यभिचार का दावानल प्रज्वलित किया है। आज देशभर में खादी प्रचार की बडी भारी धामधूम चल रही है पर इस के साथ जैन समाज का कितना संबन्ध है ? यदि किसी व्यक्तीने खादी धारण करनी भी हो तो उस की हांसी मजाक उडाई जाती है, कारण जिन लक्षाधिपतियों के घरों में रेशमी घाघरे, काश्चलियों उस पर भी कर किनारी, फूल, गोखरू, जरी सलमा सतारा लगाया जाता है, वहां बिचारी खादी की क्या किम्मत है ? अरे ! देशद्रोही, समाजद्रोही धनाढयों एक तरफ तो तुमारे स्वधर्मी भाई अन्न पीडित हो कर के पवित्र धर्म से पतित बनते जा रहे हैं. दूसरी तरफ तुमारी विधवा बहनों की बुरी दशा हो रही है, तीसरी
ओर तुमारे बाल बच्चे अज्ञान में सड़ रहे हैं, इस हालत में भी तुम व्यर्थ खर्च से अपनी इज्जत समझते हो मौजमजा उडाते हो क्या यह शर्म की बात नहीं है ? पर याद रखिए धनाढयो ! तुमारा यह चटका मटका चार दिनों का ही है, कारण आप फजुल खर्च आय (पैदास) पर करते हैं और प्राय का कारण व्यापार है वह आप के हाथों से खुसता जा रहा है, जो आपने पहिले से खर्चा बढा रक्खा है, अगर पैदास कम होगी तो भी लकीर के फकीर बन कर के आप को तो उस रास्ते पर मरना ही पडेगा