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(१६) जैन जाति महोदय प्रकरब छा. का ब्रह्मचर्य व्रत प्राप के सामने ही ध्वंस हो जायगा। जिस कारण . से दुनिया में आपकी विशेषता समझी जाती है वह गौरव मिटी में मिल लायगा। अभी तक तो समय हैं, आप सचेत हो जावें तो भाप की विशेषता और गौरव वैसे का तैसा बना है। भविष्य के जिए उस की रक्षा करना पाप ही के हाथ में है। 'मस्तु ।
- -- समाज में व्यर्थ खर्चा.
पूर्व जमाने में हमारे पूर्वज बड़े २ लक्ष्मीपात्र होने पर भी, वे खूब दीर्घदृष्टि से साधारण जन समुह का निर्वाह के लिए ऐसा तो साधारण खर्च रखते थे कि जिस से धनाढ्य और साधारण सब का अच्छी तरह से गुजारा हो जाता था; जिस में भी न्याति जाति के नियम तो इतने सरल और सादे बनाए थे कि प्रत्येक माङ्गलिक कार्यों में लापसी का भोजन तथा देशी कपड़ों की पोषाकों और प्रायः चांदी के जेवर, दागिनों में ही अपना महत्व समझते थे, इस में एक गुढ रहस्य भी था वह यह था कि देशी कपड़ों की पोषाक और साधारण गहनों से न तो विषय वासना को अवकाश मिलता था, न चोरी का भय रहा करता था और न उन पर डाकू लोग आक्रमण करते थे । इतना ही नहीं पर स्वदारा सन्तोष या पूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत पालने में भी वह पोषाक परम सहायक समझी जाती थी और उनके ब्रह्मचर्य व सदाचारका तेज तप सब संसार पर पड़ता था।