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विधवाओ की बुरी दशा.
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विवाह, अनमेल विवाह, वृद्ध विवाह, और कन्या विक्रय रूपी महा पाप दूर न हो वहां तक विधवाओं की बढती संख्या कभी बंध नहीं होगी, और विधवाओं के जीवन को धार्मिक जीवन न बनाया जाय तो दुराचार का जन्म भी रुकना असंभव है और जहां तक यह घोर पाप न रुके वहां तक समाजोन्नति की आशा रखनी आकाश कुसुमवत् है ।
मर्दुम सुमारी के पृष्ठों को जग आंख उठा कर देखिए जो बालिका पहिली मर्दुम सुमारी में कन्या लिखी गई थी वह ही दश वर्ष बाद मर्दुम सुमारी में विश्वा लिखी जा रही है यह कितना हृदय विदारक दृश्य है ? दुःख की परिसीमा है । इसी कारण से भारत के चारों ओर आज विधवा विवाह का गुलशौर मच रहा है । हा ! अफसोस ! ! जिस भारत की हिन्दु ललनाएं अपने विशुद्ध ब्रह्मचर्य के रक्षणार्थ ग्णभूमि में शत्रुओं का सामना कर अपनी arrar का परिचय दिया करती थी, अपने शील की रक्षा के लिए प्रज्वलित अग्नि की भट्ठियों में कूद पडती थी; अर्थात् जीवित देह को जलाकर सतियां हो जाती थी, श्राज उसी देश में उन्हीं वीराङ्गनाओं की सन्तान पुनर्लग्न की आवश्यकता समझ रही है, यह कैसा आश्चर्यजनक परिवर्तन ? जैन नेताओं यह नीच प्रकृती आपकी समाज का भी शिकार करना चाहती है, वायुमंडल बड़ी शीघ्रता से आप पर भी श्राक्रमण करना चाहता है । यदि श्राप इस दुष्ट प्रथा से बचना चाहे तो शीघ्रता से जागृत हो जाईए बाल विवाह, कन्या विक्रय, वृद्ध विवाह जैसी कुरूढियों को जडमूल से उम्बाड दें; बरना आप