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विधवानो की बुरी दशा.
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चिकित्सा न हों वहां तक चाहे कितनी ही घुमें पाडे, लेख लिखें, भाषण दिया करें पर देशका उद्धार होना सर्वथा असंभव है। ___ जैन विधवा मों की संख्या जैन वस्ती के प्रमाण से बहुत अधिक है, कारण जैन समाज में बाल लम, वृद्ध विवाह, कन्या विक्रय का रोग अधिक फैला हुमा है इनके सिवाय जैन समाज स्वास्थ्य रक्षण का तो न जाने प्रत्याख्यान ही कर बैठा हो इन्ही कारणों से सब से अधिक विधवायें जैन समाजमें हैं और भाज भी पूर्वोक्त कारणों से बढ़ती जा रही है, अगर हमारी समाज के धनाड्य लोगों को पांजरापोल के ढोर बकरे, और कबूतरों के रक्षण का प्रेम है, उतना समाजोद्धार का प्रेम हो तो वे लगातार बढती हुई विधवा संख्या को एकदम रोक सके और जो समाज में विधवाएं हैं उनके लिए हुन्नरोद्योग और ज्ञानाभ्यासादि संस्था खोल धर्मकार्य में लगा दें तो भी समाज का कुछ भला हो सकता है। आप जानते हैं कि दुराचार और गप्त अत्याचारों से आजदेश भस्मीभूत हो रहा है, प्रसिद्ध पत्रों द्वारा मालम होता है कि एक वर्ष में ४२०५८० केस तो कोर्टो में केवल व्यभिचार के ही होते है।
और जो गुप्त व्यभिचार होते है वे इन से पृथक् समझना चाहिए । क्या अब भी हमारे समाज नेतामों की कुंभकर्णिय नींद्रा दूर न होगी ? भला ! क्या इस दुराचार द्वारा होती हुई घोर हिंसा और महान् पाप को सुन कर हमारे दयाप्रेमी जैन समाज का हृदय एकदम नहीं फट जावेगा ? अरे ! कितनीक बिचारी गरीब अनाथ विधवाएं उदरपूर्ती के लिये सैकडों नहीं पर हजारों