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विधवाओ की बुरी दशा.
( ९१ ) असाध्य हो जाते है फिर दवाई वगैरह के हजारों रूपये खर्च करने पर भी सेंकडा ८० आदमी अपनी जीवन यात्रा वहीं समाप्त कर के काल के शिकार बनकर युवक वय में पदार्पण करनेवाली बाल ललनाओं के सौभाग्य को सदैव के लिए अस्त कर यमद्वार पहुंच जाते है । पश्चात् उन बाल विधवाओं का क्या हाल होता है वह समाज से छिपा हुआ नहीं है । इत्यादि कारणों से विधवाओं की संख्या बढती जा रही है, और उन कारणों को पैदा करनेवाले प्रायः हमारे समाजनैता और धनवान ही हैं। अगर वे चाहें तो उन सब कारणों को एक दिन में ही नहीं पर एक घंटे में भी मिटा सक्ते हैं पर समाज का इतना दुःख हैं किसको ? विधवाओं प्रति वात्सल्यता है किसके दिल में ? अपने बाल बच्चों के स्वास्थ्य की रक्षा करें कौन ?
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सरकार प्रजा को जागृत रखने की गर्ज से बाल विधवाओं का असीम प्रमाण वस्तीपत्रकद्वारा प्रति दस वर्ष आप के सामने रख दीया करती है पर उसको देखे कौन १ उसकी air है किसको ? देखिए भारत में चौदह क्रोड स्त्रीओ में करीबन तीन क्रोड (२,६९,३५,८२८, ) विधवाए हैं, चार सधवा के पीछे १ वित्रा की गिनति केवल भारत में ही है; पर यहां पर भी याद रखना चाहिए कि चौह क्रोड महिलाओं की संख्या तो सम्पूर्ण भारत की हैं और जो तीन क्रोड विधवाए हैं वे उच्च जातियों की है कि जिन जातियों में पुनर्लग्न अभी तक नहीं है । अगर उच्च जातियों की सधवाओं की संख्या लगाई जावे तो आधे से अधिक विधवाएं हैं, अर्थात् सधवाओं से विधवाएं अधिक है; हाय अफसोस ! हाय दुःख ! ! पर यह कहें किसके श्रागे । जरा निम्नांकीत कोकों तो देखिये ।