________________
( ९० ) जैन जाति महोदय प्रकरण छटा. ना के वशीभूत हो वृद्धवय में आप धनाढय ही लग्न करते है और दो चार साल के बाद संसार यात्रा पूर्ण कर बीचारी अनाथ नव युवती विधवा को रोती-श्राक्रन्द करती को छोड, आप अपने दुष्कमों का फल चुकाने को ग्वाना हो जाते है। .
विधवा वृद्धि में दूसग कारण बाल विवाह का है वह भी आप श्रीमानों की कृपा का ही फल है, वह पहिले नम्बर में ही बतला दिया है, तीसरा अनमेल विवाह भी धनाढयों के घरों से प्रचलित हुआ है, चौथे धनवानों को धन की पिपासा भी कम नहीं है, वे अपने छोटे २ बालबच्चों की सादी कर शीघ्र ही प्रदेश में धन कमाने के लिए भेज देते है; कारण की उनकी सादी के खर्चा से धन की थैलियां कम हो गई थी वह उन्ही से वसूल की जाती है क्यों कि महाजनों के घरों में तो पाई २ का हिसाब है पर शेठजी यह नही सोचते है कि पहिले से इस बालक का स्वास्थ्य कैसा है फिर हम किस प्रदेश में भेजते है और वहां की प्राब हवा इस को अनुकुल होगी या प्रतिकुल १ वहां जाने से मर्द बनेगा या नपुं. सक ? बंबइ जैसे क्षेत्रों में जाने पर भी उन लोभान्धो को न तो अपने शरीर की पर्वाह है न खान पान, रहन सहन, हवा पाणी की दरकार रखते है, उनको तो रातदिन भजकलदारम २ के ही स्वप्न पाया करते है. बम्बई जैसे शहरों में लाखो आदमी रहते हैं परन्तु जितने मग्ण हमारे मारवाडियों में होते हैं उतने दूसरों में नहीं होते ईसका खास कारण तो उनकी असावधानी और बेदरकारी है. जिसके जरीए संग्रहणी या पय के दुष्ट पंजे में जकड जाते है और वे रोग