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विधवाओ की बुरी दशा. ( ८९ ) हमारे पूज्य नेता लोग इस और मांख उठा कर देखने की कृपा करेंगे ? मुझे तो पूर्ण आशा है कि समाजनेता और धनाड्य वीर जैसे इन कुरूतियों को चला कर के समाज का अधःपतन किया है, वैसे ही वे कम्मर कस कर तैयार हो जाये तो समाज की डूबती हुई नाव को बचा लें, और जैसे कुप्रथाओं से कालिमा का टीका हासिल किया है वह दूर कर समाजोद्वारक यशतिलकको प्राप्त कर सके १ हम भी देखते हैं कि वे समाज अग्रेसर, और धनान्य लोग कबतक जागृत हो; क्या उजाला करते हैं ?
-* *(४) विधवाओं की अनाथ दशा ।
जैन समाज में पूर्वोक्त बाल लग्न, अनमेल और वृद्ध विवाह तथा कन्या विक्रय का नामो निशान तक भी नहीं था तो विधवाओं का तो होना प्रायः असंभवसा ही था; कदाचित् स्वल्प मात्र में था तो भी उनका, जीवन साध्वी जीवन के रूप में ऐसे पवित्र
और उत्तम रीती से गुजरता था कि वह उस अवस्था में अपना प्रात्मकल्याण कर के स्वर्ग-मोक्ष की अधिकारिणी बन जाती थी पर भाज पूर्वोत कारणों से अर्थात् बाललम वृद्धविवाह और कन्या विक्रय से विधवानों की संख्या दिन व दिन बढ़ती जा रही है। इस की वरमाला भी हमारे साहूकार श्रीमानों के शुभ कण्ठ को ही शोभित कर रही है, धनमद की अन्धता से प्रचिरकाल की विषयवास