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कन्याविक्रय. - (८५) कुंवारा ही रहना पड़ता है। वे मर कर के पितर हो नगर के चारों
ओर प्रदिक्षण दिया करते हैं; कारण कुदरत के नियम से मानों १०० लड़के पैदा हो तब १०० कन्याए जन्म लेती है, अगर पुरुष दूसरी, तीसरी, चौथीवार विवाह न करता हो तो कन्या विक्रय को अवकाश तक न मिले; कारण सौ लड़के और सौ लड़कियों पैदा होती है जैसे लड़कों को सादी की गर्ज होती है वैसेही लड़कियों के लिये ही समझना पर उन सौ लड़कियोंसे ३५ कन्याओं को तो दूसरी तीसरी बार विवाह करनेवाले लिलाम की माफिक कम ज्यादा किंमत दे कर के हड़प लेते हैं। उन के बदले ३५ नवयुवक ा जन्म तक कुंवारे रह जाते है। इस का फल यह होता है कि ३५ वृद्ध विवाहवालों के पीछे दो चार व दश वर्षमें वे विधवा हो कर के समाज की संख्या कम करती है, तब इधर ३५ कुंवारे मर कर के संख्या घटाते हैं अर्थात् २०० स्त्री पुरुषों में ७० संख्या कम हो जाती है । · कन्याविक्रय के तेज बजार में साधारण आदमी अपनी जंगम, और स्थावर सब मिलकिपर लिलाम कर दें तो भी उन का विवाह होना (घर मण्डना) मुश्किल है; कदाचित् घरहाठ वगैरह होम देने पर घर मंडभी जाय तो उन को अपनी उदरपूर्ती करना मुश्किल हो जाता है । उस दुःख के मारे ही उस को अर्द्धमृतक तुल्य जीवनयात्रा सम्पूर्ण करनी पड़ती है। . एक तरफ तो समाज में कुंवारे हैं, वे अपना द्रव्य पासवानों, रण्डियों, और वैश्याओं को खिला रहे हैं। तब दूसरी तरफ