________________
कन्याविकय.
( ८३ )
के अन्धे हृदय के फूटे वे मात पिता धन के गुलाम बन कर के अपनी सन्तान को तमाम उम्मर के लिए दुखी बना कर के उनके जीवन को नष्ट कर देते है । उस नीच कार्य के सहायक दलाल, माल मिष्टान उडाने वाले पंच चौधरी भी कम पाप के भागी नहीं है; इतना ही नहीं पर स्मृतिकार पाराशर ऋषीने तो उस ग्राम और उस कुल को भी घातक बतलाया है । जैसे
कन्या विक्रयिणोयेषां । देशे ग्रामे कुले तथा । पतन्ते पितरस्तेषां । ग्रामिणो ब्रह्म घातिनः ॥
अर्थात् जिस ग्राम व कुल में कन्या विक्रय
होता है वहां के पितर अधोगती में जाते हैं और उस ग्राम के निवासी ब्रह्म घातिक होते हैं । अरे ! ब्रह्मघातिको जरा आंख उठा कर के देखो महात्मा मनुने क्या कहा है
1
क्रया क्रिता च या कन्या । पत्नी सा न विधीयते । तस्यं जात सुतर्दत्तम् । पितृ पिण्ड न लभ्यते ॥
जिस कन्या से मुल्य दे कर के विवाह किया जाता है वह विधिवत् स्त्री नहीं मानी जाती है और उस के सन्तान के हाथ से पितृ पिण्डादि धर्मकार्य सफल नहीं होता है ।
इस कन्याविक्रय रूपी पापाचारने केवल हमारी इज्जत को ही नष्ट नहीं किया है पर इस अद्धम व्यापारने तो हमारी दलिद्रावस्था करने में भी कभी नहीं रखी है, जो जाति कुबेर के नाम से पुकारी . जाती थी वही आज निर्धन हो रही है चाहे लडकियों खरीदनेवाले