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________________ लेखक का परिचय. (२७) १००० श्री गयवरविलास । ७००० प्रतिमा छत्तीसी । १००० सिद्धप्रतिमा मुक्तावलि । विक्रम संवत् १६७३ का चातुर्मास ( फलोघी )। श्रावकों के आग्रह को स्वीकारकर प्रापश्रीने फलोधी कसबे में अपना दसवाँ चातुर्मास किया । लोगों के हृदय में उत्साह भग था । चातुर्मासभर अपूर्व श्रानन्द बग्ता । प्रत्येक श्रावक प्रफुल्ल वदन था । व्याख्यान में आप पूजा प्रभावना बग्घोडा दिबड़े ही समारोह के साथ' भगवतीजी सूत्र मनोहर वाणी से सुनाते थे । साथ ही आप शिक्षा प्रचार का उपदेश भी देते थे जिस के फलस्वरूप प्राषाढ़ कृष्णा ६ को वहाँ जैन पाठशाला की स्थापना हुई। साथ ही में दो और महत्वशाली संस्थाएं स्थापित हुई जो उस समय मारवाड़ प्रान्त के लिये अनोखी बात थी। साहित्य की ओर रुचि आकर्षित करने के उद्देश में फलोधी श्री संघ की ओर से रु. २०००) को फण्ड से " श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला" की स्थापना बड़े समारोह से हुई । एक ही वर्ष में इस माला द्वाग २८००० पुस्तके प्रकाशित हुई तथा जैन लाइब्रेरी की स्थापना करवा के नवयुवकों के उत्साह में वृद्धि की। १००० गयवर विलास दूसरी बार। २००० दादा साहब की पूजा! १०००० प्रतिमा छत्तीसी तीसरी बार । १००० चर्चा का पब्लिक नोटिस। २००० दान छत्तीसी । १००० पैंतीस बोल संग्रह । ट' ग ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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