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________________ (२६) जैन जाति महोदय. ने को पथप्रदर्शक बने । आपने दीक्षित होते ही शिक्षा सुधार की ओर . खूब लक्ष्य दिया और तत्काल गुरुमहाराज की कृपा से भोशियों में जैन विद्यालय बोर्डिंग सहित स्थापित करवाया और उस के प्रचार में लग गये। बिना छात्रों की पर्याप्त संख्या के विद्यालय का कार्य शिथिल म्हेने लगा। अतएव आपने आसपास के अनेक. गाँवों में भ्रमण कर अनेक विद्यार्थियों को इस छात्रावास में प्रविष्ट कराए । इस कार्य में आपश्रीने तथा मुनीम चुन्नीलालभाईने अकथनीय परिश्रम किया । लोगों में यह मिथ्याभ्रम फैला हुआ था कि ओशियों में जैनी गत्रिभर ठहर ही नहीं सकता। आपने उपदेश दे मावापों को इस बातके लिये तत्पर किया कि वे अपने बालक इस विद्यालय में भेजें। फिर फलोघी श्री संघ के प्रति प्राग्रह करने पर आप को लोहावट होते हुए वहाँ पधारना पड़ा। ____आपश्रीने सव से पहले ज्ञान प्रचार के लिये जोर सौर से उपदेश दिया । फलस्वरूप में सेठ माणकलालजी कोचग्ने अपनी ओर से जैन पाठशाला खोलने का वचन दिया। आपश्री के समाचार स्थानकवासी साधु रूपचंदजी को मिलते ही वे श्रोशियों पा कर वेष परिवर्तन कर मुनिश्री की सेवामें फलोधी आए उन को पुनः दीक्षा दे अपना शिष्य बना प्रापश्रीने रूपसुन्दरजी नाम रक्खा । पूजा प्रभावना स्वामीवात्सल्य और वरघोडा वगैरह से जैन शासन की प्रभावना अच्छी हुई । उसी समय स्थानकवासी साधु धूलचन्दजी को संवेगी दीक्षा दे रूपसुन्दरजी के शिष्य बना के उन का नाम धर्मसुन्दर रखा गया था इस वर्ष में तिवर्गवालों की तरफ से पुस्तकों के लिये सहायता भी मिली।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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