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________________ लेखक का परिचय. (२५) भगवती जी सूत्र पर इस प्रकार सतर्क व्याख्या करते थे कि श्रोताओं के मनसे संदेह कोसों दूर भागता था । प्रावश्यक्ता को अनुभव कर मापने संवेगी पानाय का प्रतिक्रमण सूत्र शीघ्र ही कंठाग्र करलिया आपने उपदेश सुनाकर कई भव्य जनों को सत् पथ बताया । ___ पाठकों को ज्ञात होगा, भापश्री जिस प्रकार अध्ययन करने में परिकर से सदा प्रस्तुत रहते थे उसी प्रकार श्राप साहित्य संदर्भ कर ज्ञानका प्रचार भी सरल उपाय से करना चाहते थे। इस चातुर्मास में तीन पुस्तकें सामयिक आवश्यक्तानुसार आपने ग्ची, जिनके नाम सिद्धप्रतिमामुक्तावली, दान छत्तीसी और अनुकम्पा छत्तीसी थं । . जब सादड़ी मारवाड़ के श्रावकोंने प्रतिमा छत्तीसी प्रकाशित कगई तो स्थानकवासी समाज की ओर से आक्षेप तथा अश्लील गालियों की वृष्टि शुरु की गई थी। श्राप की इस रचना पर वे अकारण ही चिड़ गये क्योंकि उनकी पोल खुल गई थी। . तिंवरी से बिहार कर आप भोशियों पधारे । वहाँ पर शांत मूर्ति परमयोगीराज निगपेली मुनि श्री रत्नविजयजी महागज के पास मौन एकादशी के दिन पुनः (जैन ) दीक्षा ली और जैन श्वेताम्बर मूर्ति पूजक श्री संघ की उसी दिन से गत दिवस सेवा करने में निरत रहते हैं । गुरुमहागज की प्राज्ञा से प्रापने उपकेश गच्छ की क्रिया करना प्रारम्भ की कारण इसी तीर्थपर प्राचार्य रत्नप्रभसूरिने .पाप के पूर्वजों को जैन बनाया था । धन्य है ऐसे निर्लोभी महात्मा को कि जो शिष्य की लालसा त्याग पूर्वाचार्यों के प्रति कृतज्ञता बतला
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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