SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 93
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (२८) जन जाति महोदय. २००० अनुकम्पा छत्तीसी । ५००० देवगुरु वंदन माला ।. १००० प्रश्नमाला। १००० स्तवन संग्रह दूसरा भाग। १००० स्तवन संग्रह प्रथम भाग । १००० लिङ्ग निर्णय बहत्तरी । २८००० सब प्रतिऐं। फलोधीसे विहार कर । प्रखंचन्दजी वंदादि के साथ पोकरन लाटी हो जैसलमेर यात्रार्थ पधारे । वहाँ की यात्राकर अमृतसर लोद्रवाजी ब्रह्मसर की यात्राकर पुन: जैसलमेर पधारे । आपने अपनी प्रकृत्यानुसार वहाँ के प्राचीन ज्ञान भण्डार का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया जिसमें नाड़पत्रों पर लिव हुए जैन शास्त्रों के अन्दर मूर्ति विषयक विस्तृत संख्या में प्रमाण मिल पाये : वहाँ से लौटकर आप फलोधी पाये वहाँ से खीचन्द पधारे । वहाँपर एक बाई को श्राप के करकमलों से जैन दीक्षा दी तथा पूज्य श्रीलालजी से मुलाकात हुई पुनः फलोधी में भी मिलाप हुश्रा वहाँ से लोहावट पधारे स्तवन संग्रह प्रथम भाग दूसरीवार १००० कॉपी मुद्रित करवाई वहाँ से मोशियों तीर्थ पाये वहाँ के बोडींग की व्यवस्था शिथिलसी देख आप को इस बात का बड़ा रंज हुा । फिर आपने वहाँपर तीन मास टहरकर बड़े परिश्रम से वहाँ का सब इन्तजाम ठीक सिलसिलेवार बना के उस की नींव को मजबूत कर दी। प्रापश्री के प्रयत्न से श्री रत्नप्रभाकर ज्ञानपुष्पमाला नामक संस्था स्थापित की जो प्राचार्य रत्नप्रभसूरि के उपकार की स्मृति करा रही है वहाँ से प्राप निंबरी और जोधपुर पधारे ।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy