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जैन जातिमहोदय प्रकरण छट्ठा.
श्रहिंसा प्रिय जैन
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कसाई के घर से बकरा बुड़ानेवाले कन्या बली से बालिका को छुड़वाने का प्रयत्न कदापि नभी करें किन्तु इस आसुरी उत्सवमें हर्षित मुखसे शामिल होवे, अनुमोदन करें, उतेजना देवें और मालमलिदा उड़ानें क्या यह कमशर्म की बात हैं ? यदि पशुदया जितनी भी मनुष्य दया की तरफ लक्ष होता तो क्या वे कन्या होम जैसी दुष्ट क्रियामें शामिल हो सके ? अरे ! उस स्थल का पानी भी उनकों तो खुन बराबर नजरानाचाहिए ? परन्तु क्या करे खानाने खराब करदिया स्वार्थने सत्यानाश करदीया |
एक वृद्ध अमीरने बन ठन से सजधज करके बालोंपर खिजाब लगा करके घुघराले काले बाल बनाए, बढिया इत्र तेल फुलेल और वस्त्र धारण करके नूतन बालकन्यासे विवाह किया और उस बालिका को अपने बादशाही महल के अन्दर, लक्ष्मी की अपूर्व सौन्दर्य छटासे सजे हुए एक कमरे में सुवर्ण सिंहासन पर विराजमान करी साथ २ उसके समीपही बहू मूल्य जवाहरात, हीरा, पन्ना, माणिक मोती रत्न आदि की बिछायत करदी और अपनी विविध प्रकार की एश्वर्यता = लक्ष्मी आदि के प्रलोभनसे उसको रंजित आल्हादित करनेका प्रयत्न करने लगा । किन्तु उस कन्याने साहसपूर्वक कह दिया कि आप के पास कदाच कुबेर के जितनी भी लक्ष्मी क्यों न हो, किन्तु मुझे स्पष्टरूपसे कहना पडेगा कि एक साधारण पर्णकुटीमें, जिसकी जंघा में बाण लगा हो, रक्त की धारा बह रही हो ऐसे वीरयुवक के वक्षःस्थलपर माथा लगाकर पड़ा रहने में जो