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(७२) जैन जाति महोदय प्रकरण छठा. रुक जाती है भारत में बाल विधवाभों होने का और बों के मरने का एक मात्र प्रधान कारण बाल विवाह है"
इन के सिवाय भी सैकडों विद्वानों का अभिप्राय है पर प्रन्थ बढ जाने के भय से यहां पर हम पूर्वोक्त प्रमाण देना उचित समझा है कारण समझदारों के लिए तो इसारा भी काफी होता है पर दुख का विषय है कि धर्मशास्त्र और महान पुरुषों की माज्ञां को ठोकर मार कर के भी जो सुकुमार बालक अभी ढींगला ढिंगलियों के खेल खेलते हैं, भले बुरे का जिन को शान तक भी . नहीं हैं, धोती पहिनने का जिन को तमीज नहीं, विवाह क्या बला है वह भी समझते नहीं है ऐसे अबोध बच्चों को गृहस्थाश्रमरूपी रथ के जोत दिए जाते हैं । यह कैसा भीषण और हृदय विदारक अत्याचार ? जो माता पिता अपने बालक का पसीना गिरना मी देख नहीं सक्ते हैं, वे ही आज जरासी वाह ! वाह ! ! के लिए ऐसा अनर्थ करने में नहीं हिचकते हैं । वास्तव में ऐसे माता पिता समझो पापकर्मोदय से ही मिलते हैं कि जिनकी काली करतूतों का नमूना रूप कोष्टक अंक रख करके हमारी वक्तव्यता को समाप्त करते हैं।
भारत में १५ वर्ष से कम उम्मरवाली भिन्न २ मायू की बाल पलियों की संख्या इस प्रकार है: