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________________ (६६) जैन जातिमहोदय प्रकरण छट्ठा. कर देखिए अच्छे २ विद्वान डाक्टर लोगों का बाल लग्न के विषयमें । क्या मत हैं उन को भी पढ लीजिए : (१) डा० डीयूडवी स्मिथ प्रीन्सीपल कलकत्ता कालेन का कथन है कि " बालविवाह की रीति अत्यंत अनुचित है क्यों कि इससे शारीरिक और पात्मिकबल जाता रहता है और मन की उमंग पलायन हो जाती है " (२) डा० न्युमिन कृष्णबोस का कथन है कि " शारीरिक बल नष्ट होने के जितने कारण है उनमें सबसे महान कारण न्यून अवस्था का विवाह है यही मस्तक के बल की उन्नत्ति का रोकनेवाला है " (३) मिसेज पी. जी फिफसिन लेडी डाकर बॉम्बे का कहना है कि " हिन्दूओं की स्त्रियों में रूधिरविकार त्या चर्म दूषणादि बीमारियाँ अधिक होने का कारण बालविवाह ही है क्यों कि सन्तान शीघ्र उत्पन्न होती है फिर उनको दूध पिलाना पडता है. जब कि उन की रगें द्रढ होने नहीं पाती, जिससे माता नाना प्रकार के रोगों में फस जाती है" (४) डा० मानकरण शारदा, बी. एस. सी., एम. बी. बी. एस. अजमेर की सम्मति है कि " बालविवाह जैसी निकम्मी अनर्थकारक रीतिसे न केवल हमारी शारीरिक और मानसिक सति में बाधा पहुंचती है, न केवल हमविदेशीयों की नजर में ही गिरसे है, प्रत्युत एक हृदय को हिलादेनेवाला दारुण द्रश्य निरन्तर प्रांखो के
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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