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बालविवाह.
(१५) अफसोस ! । आज विधवानों के प्रार्तनादसे व रण्डवाओं के करूणाक्रन्दसे और अकाल मृत्युसे स्वर्गीय पुष्पोद्यान प्रानन्द कानन रूपी भारत गारत होता जा रहा है जिन नवयुवक और नवयुवतियों को देशोद्धार के लिए अपने पूर्वजों का अनुकरण करना था। प्राज वे ही घर २ के गुलाम बन रहे हैं हाय ! अफसोस ।। जिस देशमें सीता दमयन्ती सुलसा मनोरमा और अंजना जैसी वीरप्रसूता देवीयोंने जन्म लिया उसी देशमें भाज सरे बजार वैश्यावृति हो रही है यह कितना लज्जाजनक आश्चर्यकारी परिवर्तन है यह परिवर्तन क्यों ? इसके जन्मदाता कौन ? इसकी वृद्धि करनेवाले सहायक कौन ? यह अपगध किस के शिर मडा जाय ? यदि मैं भूल नहीं करता हूं तो विश्वासपूर्वक दृढतासे कह सक्ता हूं कि जो समाज के कर्ता धर्ता भाग्यविधाता सदाचार के ठेकेदार बन बैठे है धर्म कर्मरूपी सबक के पट्टे जिन्होंने अपने नामपर ही समझ रक्खे हैं जो सभा और पंचायतियों - बैठकें लम्बी चौडी व्यर्थ गप्पें हाका करते हैं जिन्होंने बालविवाह
और अनमेल विवाह करना करवाना और इस कुप्रथा को उचेजना देना अपना कर्तव्यकार्य मान रक्खा है ऐसे अग्रेसर और-धनान्य माता पिता ही इन सब बातों के जुम्मेवार अर्थात् उत्तरदाता हैं।
इस बाल लमरूपी कुप्रथा के लिए हमने हमारे विचार माप श्रीमानों की सेवामें निवेदन किए हैं कदाच पाप को यह कटुक दवारूपी हमारे वचन अरूचिकारक होगा पर आप जरा भांख उठा