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________________ बाल विवाह. ( ६३ ) पर आज तो हमारे २९ वर्षवाले २-३ भर्द्धमृत्यु सन्तान के पिता -बन बैठते हैं उन कों विद्या और ब्रह्मचर्य की क्या पर्वाह है इत्यादि । यह सब दोष हम हमारे समाजनेता और श्रीमन्तो के सिवाय किस को दें ? क्यों कि धनवान अपनी धनमदता और बढ़ाई के अहंकार में अन्ध बन सुशिक्षीत और सभ्य समाज की सत्यशिक्षा व सलाह की अंशमात्र भी पर्वाह नहीं करते हैं देशनेता और मुनि महाराजों के हितोपदेश पर लात मार बालविवाह और अनमेल लग्न जो अनर्थ कारक होने पर भी उन को खूब जोर शोरसे बढा रहे है । पर याद रखिए कि आप की इस मदान्धता और उछृंखलता के कारण ही शारदा बिल ' का प्राविर्भाव हुआ है । आजकल बाललग्न और अनमेल विवाहने भारत में त्राहि २ मचा दी हैं इस दुष्ट प्रथाने भांखों के सामने दु:ख देश अशान्ति और ताण्डव नृत्य की परिकाष्टा बतला दी है । वीरप्रसूता रत्नगर्भा भारत का गौरव मट्टी में मिला दिया है स्वर्गीय पुष्पोद्यान दुर्गन्धमय वायू मंडल से दूषित हो रहा है । बडे २ रंगमहल स्मशान भूमि की दुखमय शय्या बन रही हैं होनहार नवयुवक वर्ग का अधःपतन हो रहा है, नवयुवक निस्तेज होते जा रहे हैं तरूण युवतियों अपने रूप लावण्य को बलीदान कर रही है नेत्रों की ज्योती कम पड जानेसे नवयुवक वर्ग अपने नाक और नैत्रोंपर पत्थर ( चस्मे ) की लालटेन को लगा रहे हैं कालेज और दफ्तरों में जानेसे दम व जय की शिकायतें होने लगती है प्राशा और उत्साह की जगह उन के निस्तेज हृदय पर निराशा और दुश्चिंताओंने भाक्रमण कर लिया है
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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