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बाद विवाह.
(११) समाज का गौरव चारों और गर्जना कर रहा है, जबसे हमारे धनाढयों और समाज नेतामोंने बालविवाह और अनमेल विवाह जैसी कुप्रथा को समाज में स्थान दिया तबसे ही हमारा प्रधापतन होना प्रारंभ हुमा; माज वह अपनी माखिरी हद तक पहुंच गया है इस बाल लम और अनमेल विवाहने तो हमारी समाज वृद्धि के दरवाजे ही बंध कर दिए हैं इतना ही नहीं पर जो आज हमारी जन संख्या की कभी हो रही है उसका कारण भी यह कुप्रथा ही हैं। देखिए जिनके घर में एकाद भई मृत्यु सन्तान पैदा होती है वह अपनी उदरपूर्ति के लिए भी हजारों दुष्कृत्य कर पेट भरती है इस हालत में उनसे हम समाज सेवा की भाशा ही क्यों ग्खें ?
इस बाललन और अनमेल विवाह से एक और भी गेग पैदा हुआ है वह यह है कि इन दोनों कारणों से समाजमें विधवानों की संख्या भी खून बढती जा रही है। लोग अपनी मूर्खता की ओर तो ख्याल नहीं करते हैं कि विधवावृद्धि के लिए हमने कैसे दरवाजे खोल रक्खे हैं बालविवाह से कचे वीर्य का क्षय होनेसे होनहार युवक मृत्यु को प्राप्त हो जाते है और अनमेल विवाह तो इसमें खूब वृद्धि कर रहा है। पहिले के जमाने में चालीस पचास वर्ष का मनुष्य मर जाता था तो एक ग्राम में ही नहीं परन्तु सारे मण्डल (प्रान्त) में हा ! हा ! कार मच जाता था आज ऊगती जवानी अर्थात् वीस पचीस वर्ष का भादमी मर जाता है तो १२ दिनों के बाद उस को कोई याद भी नहीं करता है । और उसके पीछे विचारी बाम विधवा