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(६०) जैन जाति महोदय प्रकरण छठा.
जातो वा न चिरंजीव, जीवेद्वा दुर्बलेन्द्रिय। तस्मादत्यन्त बालायं, गर्माधिनं न कारयेत । ___ अर्थात् सोलह वर्षसे कम कन्या और पचवीस वर्षसे कम पुरूष, यदि सम्भोग करेंगे तो अव्वलतो उनके गर्भोत्पत्ति होगी ही नहीं, यदि गर्भ रह जायगा तो वह पूरा न हो करके उसका पतन हो जायगा और कदाचित अवधि समाप्त करके जन्म धारण भी करले तो जिन्दा नहीं रहता है दुनिया में इसी प्रकार हजारों सन्तान (बाल बालिकाएँ ) मग्गए और मरते जा रहे हैं क्या वह बाल लग्न का कटुक फल नहीं है ? यदि जीवित भी रह जाय तो अल्पायु में मृत्यु का सरण ले लेता है अगर विशेष जीवित रहे तो भी भनेक रोगोंसे ग्रसित हीन दीन दुःखी हो करके कष्टमय जीवनयात्रा पूर्ण कर मृत्यु का शिकार बनजाता है।
इस अनमेल विवाहने हमाग कहांसक सत्यानाश किया यह लिखते समय हमारे हाथ थग्थर कम्पने लग जाते हैं, लेखिनी टूट पडती है, हृदयसे खूनकी बून्दे बह निकलती है। जिस समाज में क्रोडों की संख्या थी; वह लाखों में आ रही है कारण सुयोग्य विवाहसे हमारे एक ही पिताके दस २ भोर वीस २ सन्तान उत्पन्न होती थी जिनकी हुंकार मात्रसे ही धरतीकम्प उठती थी और जिन्हों ने अपना पवित्र जीवन देश सेवा, समाज सेवा, धर्म सेवा और राज सेवामें लगाकर पवित्र उज्वल और अमर बनाया था । और उन्ही वीर पुङ्गवों के किए हुए पुन्य कार्यों की बदौलत ही आज हमारी