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________________ बाल विवाह ( ५७ ) बस ! बालविवाह के हिमायतीदारों का यह एक अमोघ शस्त्र है और इमी श्लोक को आगे रक्ख कर वह कह देते हैं कि बड़ी कन्या घर में रखने से नर्क में जाना पडता है, परन्तु इस पर बुद्धिपूर्वक विचार कौन करे ? इतिहासों के पृष्टों को देखे कौन १ कि इन श्लोकों का जन्म किस कारण किस समय हुआ; उस समय इन की किस कारण आवश्यकता थी ? ' श्रा मुस्लमानों की विषयान्धता के जुल्म से कन्या धर्म की रक्षा के लिए, विक्रम की सोलहवी शताब्दी में पंडित काशीनाथ भट्टाचार्य ने अपने शीघ्रबोध में यह श्लोक दिया है; कारण पत्ति काले मर्यादा नास्ती ' उस आफतकाल में पूर्व मर्यादा का लोप किया था पर यह सदैव के लिए नहीं था आज वह आफत ही नहीं है तो फिर उन श्लोकों को आगे कर, बाल विवाह जैसे देश घातक रिवाज के हिमायतदार बन्ना यह कितना अज्ञान है । भले पूर्व जमाने में जब स्वयम्बर के अन्दर कन्या अपने वर को स्वयं पसन्द कर लेती थी, या जहां स्वयम्बर नहीं होता या वहां भी अपने योग वर को जो उम्मर, रूप, गुण, बल, विगेरह को देख कर के पसन्द करती थी तो क्या यह कार्य ८ - १० वर्ष की बालिकाएं कर लेती थी ? शीघ्रबोध ऐसा कोई प्राचिन आगम, शास्त्र, वेद, पुराण श्रुति, स्मृति या नीतिशास्त्र नहीं है कि जिस पर विश्वास किया जाय, प्राचिन शास्त्र और नीति तो खास जोर देकर पुकार रहा है
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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