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________________ ( ५८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छा. कि सोलह वर्ष की कन्या से कम उम्मरवाली की सादी नहीं करना चाहिए कारण कि आठ वर्ष बाल क्रीडा और पाठ वर्ष तक शानाभ्यास (शिक्षा) करने पर ही उन की सादी करना अच्छा है। नीति और संस्कार शास्त्रों में स्पष्ट उल्लेख मिलता है कि वर कन्या जब अपनी जुम्मेदारी ( कर्तव्य ) को समझने लग जाय, तब ही उनका विवाह करना चाहिए। इनके सिवाय कम उम्मरवाली कन्या को वर्तमान कानून भी ऐसी कम उम्मर वाली लडकियों को साबालिग नहीं मानता है; कानून में १२ वर्ष की पत्नी के साथ यदि उसका पति उस की मर्जी से संभोग करे तो भी १० वर्ष की सजा और जुरबान का स्पष्ट फरमान है। देखो " मारवाड ताजीरात " दम ३७५३७६ और ' फोजदारी जाब्ता' दफा ५६१ इत्यादि । धर्मशाख, नीतिशास्त्र, संस्कार विधि, और राज्य कानून जिस बाल विवाह रूपी कुप्रथा को खूब जोर शोर से धिक्कार रहे हैं; फिर समझ में नहीं आता है कि समाज के नेता और धनाढ्यों के नेत्रोंसे अज्ञान पडल दूर क्यों नहीं होते हैं। इस बाल लमने अपने सहायक रूप अनमेल विवाह की भी प्रथा को खडी की है, और उस के आभारी भी हमारे धनाड्य ही है धनान्यों की सादियों प्रायः ऐसी देखी जाती है कि दस वर्ष का वर और बारह वर्ष की कन्या । कुदरत जब कन्या से पुरुष की उम्मर ५-७ साल अधिक चाहा रही है, पर हमारी समाज के लक्ष्मीपनियोंने तो कुदरत को ही ठोकर मार देते है।
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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