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( ५६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा.
(४) कुंवारा सगपण लम्बे समय तक रहने में अक्सर कर देखा जाता है कि आपसमें किसीन किसी प्रकारका रंज पैदा हुए विगर नहीं रहता है जिस में औरतों का तो कहना ही क्या थोड़ीसी चीज वस्तु के लिए मापसमें खटरास पड़जाता है । इत्यादि छोटे २ ढींगले ढींगलियों का सगपण करने में बहुत नुकशान है फिर समझमें नहीं पाता है कि धनाढय लोगोंने इस कुप्रथा को अपने हृदयमें क्यों स्थान दे रखा है । क्या बालबच्चे बड़े हो जाने पर उनकों सगपण नहीं मिलेगा ?
दर असल यह सगपण बालकों का नहीं होता है पर उन देश घातक धनाढयों का संबन्ध होता है, कारण उन धनान्धों को जितनी अपने बराबरी के घरकी अभिलाषा है; उतनी अपने बाल. बचों के जीवन की नहीं है चाहे उनका अपक्क वीर्य क्षय हो करके अपने जीवन से हाथ धो बैठें। चाहे उनका शारिरीक या मानसिक बल निस्तेज हो जाय चाहे उनकी भविष्य सन्तान कमजोर तो क्या पर निवेश हो जाय तथापि हमारे धनाढयों को उसकी तनिक भी चिन्ता नहीं है; इतनाही नहीं पर कितनेक रूढी के गुलाम अपने दुषित भाचरणा का बचाव के लिए अपवाद समय के एक दो लोको को भागे रख देते हैं। भ्रष्ट वर्षा भवेद् गौरी । नव वर्षा च रोहिणी ॥
दशवर्षा भवेत्कन्या । ततः उई रजस्वला ।। माता चैव पिता तस्या । ज्येष्ठ प्राता तथैव च ॥
त्रयस्ते नरकं यांति । दृष्ट्वा कन्या रजस्वलाम् ।।