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जैन जाति महोदय प्रकरण छा. जो कुच्छ लिखेगें वह उन अप्रेसर व धनाड्यो के लिये कि ' जिन्होने जान बुझ के कुरूढियों को अपने गलेमे बन्ध रक्खी हैं जिस की काली करतुतो से आज समाज का अधःपत्तन हो रहा है।
(१) बाल लग्न और अनमेल विवाह ।
हमारी समाज में बाल विवाह का नामनिशांन भी नहीं था. हमारे नीति और धर्मशास्त्र पुकार २ कर कह रहा है कि शरीर में सुत्ते हुए नौ अंग जागृत न हो जा वहाँ तक लड़का विवाह का अधिकारी नहीं है अर्थात् जन्म से आठ वर्ष तक तो बाल क्रिडा यानि हसना खेलना शरीर स्वास्थ्य को बढाना बाद उन बालको कों कुछ होसला आ जावे तब विद्याध्ययन करवाना प्रारंभ करे वह आठ वर्ष तक पढाई करे कि स्त्री व पुरुष अपनी अपनी कलामो में खुब प्रवीण हो जा फिर भोगाभिलाषी हो जा तब ही उन की सादी कि जाती थी पर उस समय लडके और लडकिये सब लिखे पढे होते थे वास्ते उन के माता पिताओं को यह अधिकार नहीं था कि वे उन के प्रतिकुल सादिये कर जन्मभर की कैद में डाल देते ! उन की सादि या तो स्वयंवर द्वारा होती थी या उन के रूप गुण बल उम्मर और धर्म की समानता पर ही कि जाती थी इसी कारण दाम्पति जीवन सुख शान्ति और धर्ममय गुजरता था और उन की संतान भी शूरवीर धीर प्रतिज्ञा पालक सदाचारी उच्च संस्कारी गुणपाही साहसीक निर्मिक चा