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________________ ( ४८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छला. आचार्य श्री रत्नप्रभसूरि भादि पूर्वाचार्योने जो कुच्छ किया वह ठीक सोच समजके जैन धर्मकि उन्नति के लिये ही किया था और इस उत्तम कार्य कि उस समय बही भारी आवश्यक्ता भी थी. और जहाँ तक उन महर्षियों के निर्देश किये पथ पर जैन समाज चलता रहा वहां तक जैन समाज कि दिन व दिन बडी भारी उन्नति भी होती रही थी इतना ही नहीं पर जैन जातियों भारत में सब जातियो से अनेकगुण चढवढके जहुजलाली भोगव रही थी. जबसे आचार्यश्री प्रदर्शितपथ से प्रथक् हो मन घटित मार्ग पर पैर रखना प्रारंभ किया था. उसी दिन से एक पिच्छे एक एवं अनेक कुरुढियोंने जैन समाज पर अपना साम्राज्य जमालीया जिसके जरिये उन्नति के उच्च सिक्खपर पहुंची हुई जैन जातियों क्रमशः आज अवनीतिकी गेहरी खाडमे जा गिरी है उन कुरूढियों को हम आगे के प्रबन्धमे ठीक विस्तारसे बतलाने का प्रयत्न करेगें । अगर उन हानीकारक कुरुढियों को जैन समाज आज ही जलाञ्जली दे दे तो कलही आप देख लिजिये जैन जातियों का उज्वल सतारा फिर भी पूर्वकी भांति चमकने लग जावे इत्यालम्. ॐ शान्ति ३ ॥
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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