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जैन जातियो के विषय प्रश्नोत्तर. (४७ ) हरगीज नहीं। इन सब दोषों का कारण तो हमारी जैन समाज का संकुचित हृदय और संकीर्ण वृत्ति ही है कि जिसके जरिये जैन समाज दिनप्रतिदिन अधोगति को पहुंच रहा है।
सञ्जनों ! वर्तमान जैन समाज कि पतनदशा देख अदूरदर्शी लोगोंने आचार्यश्री रत्नप्रभसूरि आदि पूर्वाचार्यों पर मिथ्या दोष लगा के अपनि आत्मा को कृतघ्नीता का वनपापसे अधोगति मे डालने का प्रयत्न किया है उन महानुभावो पर हमे अनुकम्पा अर्थात् दया आ रही है इसी कारण उन अनुचित प्रश्नों का समुचित उत्तर इस निबन्ध द्वारा दिया गया है । जिस को श्राद्योपान्त खुब ध्यान पूर्वक पठन पाठन करने से आपको ठीक तौर पर
रोशन हो जायगा कि- (१) न तो आचार्य रत्नप्रभसूरिने अलग २ जातिये बनाई
___ थी जैसे कि आज दृष्टिगोचर हो रही है । . (२) न आचार्यश्रीने जो महाजन संघ स्थापन कीया था.
.. उनको कायर और कमजोर बनाया था। (३) न प्राचार्यश्रीने जैन धर्मकों राजसत्ता विहिन ही बनाया. (४) न आचार्यश्रीने गच्छ फिरके समुदाये बनाई थी. (५) न प्राचार्यश्रीने कहा था कि तुम एक धर्मपालन करते ' हुए भी कन्याव्यवहार करने मे संकीर्णता को धारण
कर लेना.