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________________ ( ४६ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छछा. से बहार कर दिया ? मेरा ख्यालसे तो श्राप सज्जनो को ऐसा अनुचित कार्य करना ठीक नहीं था पर खेर अब भी इसका सुधार हो जाना बहुत जरूरी है और भविष्य में इसके फल भी अच्छा होगा इत्यादि संघपति के कहनेका असर उन जाति अग्रेसरोपर हुवा तो सही पर उनने अपना हटकों साफ तौर से नहीं छोडा इस लिये संघपतिने अपनि कन्या की सादी लुणाशाहा के साथ कर दि इस विशाळ भावनाने उन जाति नेताओ पर इतना असर किया कि वह संघपति के हुकम को सिरोद्धार कर लुणशाहा के साथ जातिव्यवहार खुला कर दिया इस रीति से संघपतिने अपने हृदय कि विशालता उदारता से लुणाशाहा के महत्व में और भी वृद्धि कर उनको साथ ले आप गिरिराजकी यात्रा के लिये संघ के साथ प्रस्थान कर दिया। इस उदाहरणसे आपको भली भांति रोशन हो गया होगा कि इस अनुचित बरतनने साधारण वात पर समाजमें किस कदर केश कदाग्रह फेला दिया था कहाँ तो लुणाशाहा जैसे को न्याति बहिकृति करनेवालो कि संकीर्णता और कहाँ. जाति हितैषी-दूरदर्शी संघपति कि हृदय विशालता कि जिन्होंने निज कन्या दे कर संघमे शान्ति स्थापन की। क्या कोई व्यक्ति यह कहन का साहस कर सक्ते है कि एक धर्मपालन करनेवालि जैन जातियों में जहा रोटी व्यवहार है वहां बेटी व्यवहार न होने का कारण जैन जातियों व पूर्वाचार्य है ? अपितु
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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