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________________ जैन जातियों का महोदय के पश्चात् " पतन दशा का कारण " पूज्याराथ्य प्रातःस्मरणिय जैनाचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरादि पूर्वाचार्योपर कितनेक अनभिज्ञ लोग जो असत्याक्षेपरूप प्रभ किया करते है जिस का समुचित उत्तर इसी प्रकरण की भादि में मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराजने वडी योग्यता से दे दिया है कि प्राचार्य श्री रत्नप्रभसूरीश्वरने जैन जातियों को कायर कमजोरादि नही बनाई। प्रत्युतः आप श्रीमानोंने अपनी अमृतमय देशनाद्वारा वार वार उपदेश दे उनकों नैतिक धर्मिज्ञ सदाचारी परोपकारी शूरवीर धीर गांभिर विनय विवेक उदारचितादि भनेक सद्गुण और तन धन से सम्रद्धशाली बनाई अर्थात् उनका " महोदय" किया था इतना ही नहीं पर जैन जातियों को क्रोडों कि संख्या वृद्धि कर उनको उन्नति के उच्चे शिखरपर पहुँचा दी थी. परन्तु यह वात कुदरतसे सहन न हुई काल की करता से जैन अप्रेसर और धनाढ्यों के हृदय में संकीर्णता का प्रार्दुभाव हुमा जिससे हमारे पूर्वाचार्यों कि विशाल भावनारूपी क्षेत्र को संकुचित बना दीया । अप्रेसरो का सतामद धनाड्यो का धनमद ने उनको अभिमानरूपी हस्तीपर भारूढ कर दीया । जिसकी बदोलत समाज श्रृंखलना तुटी-समभावी एक देवगुरू के उपासकों मे उच्च नीच के अनेक भेदभाव पैदा
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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