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( ४४ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छटा. पर पोसवाल झाति के अग्रेसरोने लुणाशाहा को न्याति बहार' कर दिया, ठीक उसी समय नागोर से श्रीमान सारंगशाहा चोरडियाने निजद्रव्य से अपने संघपतित्वमे एक बड़ा भारी और सम्रद्धशाली संघ निकाला वह क्रमशः चलते हुवे एक गूड नगर के किनारे बडी विशाल और मनोहर वावडि तथा सुन्दर गुलझार बगेचा को देख अर्थात् सर्व प्रकारसे सुविधा समझकर उसे राज के लिये वहाँ ही निवासकर दिया. वावडि और बगेचा कि अत्युत्तम भव्यता देख संघपतिने नागरिको को पुच्छनेसे पत्ता मिला कि यह वावडि व बगेचा थाकित पंथी-मुसाफरो के विश्रामार्थ इसी नगरमे रहनेवाला लुणाशाहा नाम के साहुकारने निज द्रव्यसे बनवा के अनंत पुन्योपार्जन किया है यह सुनते ही संघपति खुश हो लुणाशाहासे मिलने कि गरजसे आमन्त्रण भेजा उन दानेश्वरी को अपने पास बुलवाया और धन्यवाद के साथ उनका बड़ा भारी आदर सत्कार किया । लुणाशाहा भी संघपति का धर्म स्नेहसे आकर्षित हो अपनि तरफसे भोजन का
आमंत्रण किया कुच्छ देर तो आपसमें मनुहाये हुई पाखिरमे लुणाशाहा का अति आग्रह देख संघपतिकों लुणाशाहा का स्वामिवात्सल्य को स्वीकार करनाही पडा । लुणाशाहाने भोजन कि इतनी तो अलौकिक तय्यारिये करवाई कि उन सबको लिखना लेसनीके बहार है भोजन समय श्री संघके लिये स्वर्ण और रूपा के थान कटोरियों इतनी तो निकाली कि जिसको देख संघपति आदि पाश्चर्य में दुब गये और विचार करने लगे कि ५००