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________________ जैन जातियो के विषय प्रश्नोत्तर. ४३ ) खण्ड खण्ड हो गये और वह ग्राम बगेरेह के नाम से अलग २ जातियों के रूप मे परणित हो एक दूसरो को प्रथक् २ समझने लग गये । उस जमाना मे रोटी बेटी व्यवहार बन्ध कर देना तो मानो एक बच्चो का खेला सदृश हो गया था इतना ही नहीं पर एक ही जाति में जैसे मुत्सही लोग व्यापारियों को कन्या देने में संकीर्णता बतलाते हुवे अभिमान के हाथीपर चढ गये थे और भी दशावीसा-पंचा अढायादि इतने तो टुकडे हो गये थे कि जिस की संख्या देख हृदय भेदा जाता है. इतना होनपर भी उस समय जैनो कि तादाद कोडो कि संख्या मे थी और प्रत्येक जथ्थामें लाखो क्रोडो कि संख्या होनेसे उनको वह अनुचित कार्य भी इतना असह्य नहीं हुवा कि जीतना बाज है। ___इस कुप्रथाने न्याति जाति में ऐसे तो सजड संस्कार डाल दिया कि एक जाति का मनुष्य किसी दूसरी जाति कि कन्या के साथ विवाह कर ले तो उस को जाति बहिष्कृत के सिवाय कोइ दूसरा दंड भि नहीं दिया जाता था जिसका एक उदाहरण वहाँपर बतला देना अनुचित न होगा ? यह उदाहरण उस समय का है कि जिस समय स्वस्वजातिमे कन्या व्यवहार होने की कुप्रथा अपनी प्रबल्यता को खुब जमा रही थी, अर्थात् विक्रम की चौदहवी शताब्दी की यह जिक्र है । कि ओसवाल झातिके आर्यगोत्रिमें एक वडा ही धनाड्य और धर्मझ लुणाशाहा नाम का महाजन था उसने पूर्व संस्कार प्रेरित एक महेश्वरी कन्या से विवाहा कर लिया. इस
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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