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जैन जातियो के विषय प्रश्नोत्तर. (४१) सामिला मिलाते गये और उन के साथ रोटी बेटी व्यवहार भी खुला दील से करते गये । इस हृदय विशालता के कारण ही हमारे पूर्वाचार्य और समाज अप्रेसरोने समाजोन्नति में अच्छी सफलता प्राप्त की थी जो कि सरू से लाखो कि तादाद में थे वह कोडों की संख्या तक पहुंच गये ।
शिलालेखों से पत्ता मिलता है कि विक्रम की इग्यारवी शताब्दी तक तो ओसवाल पोरवाड और श्रीमालो के आपसमे बेटी व्यवहार था और वंशावलियों तो विक्रम की सोलहवी शता. ब्दी तक पुकार कर रही है इस वात्सल्यता से ही जैन जातियों का महोदय हुवा था और इसमे मुख्य कारण हमारे पूर्वाचार्य और समाज नेताओ कि हृदय विशालता ही थी.
कालान्तर उन जाति अग्रेसरो के मस्तकमें ईर्षा-मत्सरता का एक जबर्जस्त किडा आ घूमा. जिस के जरिये प्रत्येक साखा के अग्रेसरों के हृदय मे अभिमान पैदा होने लगा। ऐश्वर्यता और ठकुराईरूपी मद ने उन्ह को चारों और से घेर लिया. इसका फल स्वरूपमें एक साखा के नेताओं के साथ दूसरी साखा के अप्रेसरो का वैमानस्य हुका तब एकने कहा कि तुम पोरवाड हो दूसराने कहा तुम श्रीमाल हो तीसराने कहा तुम ओसवाल हो इस शुद्रवृति की भयंकरता यहाँ तक बढ गई कि ओसवालोने पोरवार
को कह दिया के हम तुमको बेटी नहीं देगें. पोरवाडोने श्रीमालो • को कह दिया की हम तुम को कन्या नहीं देंगे इत्यादि फिर तो था ही क्या जिस २ प्रान्तोमे जिन २ साखामो कि प्रबल्यताथी