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( ३८ ) जैन जाति महोदय प्रकरण छछा.
सत्य और सन्मार्ग दर्शक जैन धर्म प्रायः लुप्त सा हो जाने का कारण हमारे पूर्वाचार्य और उन का संघ संगठन कार्य कभी नहीं हो सक्ता है कारण उन्होंने तो सेंकडो कठनाइयों का सामना कर के भी मरणोन्मुख गया हुवा जैन धर्म का उद्धार कर । जीवित प्रदान किया । अगर सत्य कहा जाय तो वह सब दोष अपना ही है और इस दोष का कारण अपनी वैपरवाही-कमजोरी, प्रमाद और हृदय कि संकीर्णता है कि आज सत्य जैन धर्म सिवाय उपाश्रय के किसी विद्वानों के कानो तक पहुंचाने का तनक भी कष्ट नहीं उठाया अगर जैन धर्म के प्रचारक आज भी कम्मर कस कर तय्यार हो जाय तो जैन धर्म को फिर से राष्ट्री धर्म अर्थात् विश्वव्यापि धर्म बना सक्ते है पर लम्बी चौडी वाते हाकनेवालो के अन्दर इतनी हिमत और पुरुषार्थ कहाँ है ?
फिरके गच्छ और समुदाये अलग २ होने का कारण जैन जातिये नहीं पर साधारण क्रियाकाण्ड है तथापि उन सबका तत्व ज्ञान एक ही है राज सत्ता विहिन होने का कारण भी जैन जातिये नहीं पर इन का खास कारण तो हमारे आचार्यो देव का उपाश्रय ही है कि वह अपने उपाश्रय के बहार जा के जैन तत्वझान-फिलासफी का प्रचार करना चिरकाल में बंध कर रखा है इतना ही नहीं पर वडे बडे राजा महाराजो और अनेक विद्वान राज कर्मचारी वगैरह जैन धर्म का तत्वज्ञान समझने कि जिज्ञासा करने पर भी उन को समझावे कोन ? कारण कितनेक तो मुनि खुद भी तत्वज्ञान से अनभिज्ञ है और कितने को कि पीच्छे इतनी