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जैन जातियो के विषय प्रश्नोत्तर. ( ३७ ) जाता है इसी दुःख के कारण तो गुजरात में केइ छोटी छोटी जातियें जैन धर्म का परित्याग कर अन्य धर्म को स्वीकार कर लिया और उन की ही संतान आज जैन धर्म से कट्टर शत्रुता रख अनेक प्रकार से नुकशान पहुंचा रही है । प्रियवर ! क्षत्रियोंने जैन धर्म से किनार ले लिया इस का कारण पूर्वाचार्यों कि संघ संस्था नहीं किन्तु जैन समाज कि हृदय संकीर्णता ही है ।
( ४ ) जैन जातियें बनाने से जैन धर्म राज सत्ता विहिन हो गया तदुपरान्त जातिये गच्छ फिरके आदि में अलग २ पड जाने से जैन धर्म जैसा सत्य और सन्मार्ग दर्शक धर्म का गौरव प्रायः लुप्तसा हो गया ?
उत्तर-अब आप को याद दीलाना न होगा कि पूर्वाचार्योंने अलग २ जातिये नहीं बनाई किन्तु अलग अलग वर्ण जातियों में विभाजित जनता को एकत्र कर ' महाजन संघ' कि स्थापना की थी अगर थोडी देर के लिये मान भी लिया जाय कि जातियें बनाने से ही जैन धर्म राज सत्ता विहिन हो गया तो क्या आप यह बतला सक्ते. हो कि राज सत्ता संयुक्त धर्म में फिरके जातिये
और समुदायों का अभाव है ? क्या राजसत्ता धर्म में क्लेश कदाग्रह कुसम्प नहीं है ? अर्थात् क्या वहाँ शान्ति का साम्राज्य दृष्टिगोचर हो रहा है ? अगर ऐसा न हो तो यह दोष हमारे पूर्वा.चार्यों पर क्यो ? यह तो जमाना कि हवा है वह सब के लिये एक सारखी होती है।