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________________ जैन जाति महोदय प्रकरण छट्ठा. लोग जैन धर्म को स्वीकार करते थे तब उन को सब तरह कि सहायता दि जाति थी उन के साथ रोटी बेटी व्यवहार बडी खुशी के साथ किया जाता था और उन को अपना स्वघर्मि भाई समझ बडा आदर सत्कार किया जाता था इस वात्सल्यता को देख अन्य लोग जैन धर्म को बडी शीघ्रता से स्वीकार किया करते थे आज हमारी जैन समाज का कलुषीत हृदय इतना तो संकुचित हो गया है कि आज हमारे मन्दिरों और उपाश्रयों के दरवाजे पर स्वयं बोर्ड लगाया जाता हुवा है कि जैनेत्तर लोगों को मन्दिर उपाश्रय में पग देने का भी अधिकार नहीं है अगर कोई जैन तत्त्वज्ञान कि ओर आकर्षित हो जैन धर्म स्वीकार कर ले तो उन के साथ रोटी बेटी व्यवहार की तो अाशा ही क्या ? जैनेत्तरो के लिये तो दूर रहा पर खास जैन धर्म पालने वालि जातियों जो कि अपने स्वधर्मि भाई है पूर्व जमाना में किसी साधारण कारण से उन के साथ बेटी व्यवहार बन्ध हो गया था और वह अल्प संख्या में रह जाने से बेटी व्यवहार से तंग हो जैन धर्म को छोड रहा है पर उच्चता के ठेकेदारों में उन स्वधर्मि भाईयों के साथ बेटी व्यवहार करने कि उदारता कहां है चाहे वह धर्म से पतित हो जा तो परवहा किस का है। फिर भी बडी बडी डिंगें हांकते है कि जैन जातिये बनाने से क्षत्रियोंने जैन धर्म से किन्नार ले लिया परन्तु यह दोष आप की संकीर्णता का है या पूर्वाचार्यों का ? भलो क्षत्रिय तो दूर रहा पर पोसवाल, पोरवाड, श्रीमाल, वगैरह तो एक ही खान के रत्न है पर उन के साथ रोटी व्यवहार होने पर भी बेटी व्यवहार क्यों नहीं किया
SR No.002448
Book TitleJain Jati mahoday
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherChandraprabh Jain Shwetambar Mandir
Publication Year1995
Total Pages1026
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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