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जैन जातियों के विषय प्रश्नोत्तर. ( ३५ ) के गृह क्लेश और आपुस कि विरोधता के कारण पुर्सतही कहा है कि वह अपने जैन धर्म के तत्वज्ञान को आम पब्लिक में जैनेत्तर भाइयों को समझा के उन के अन्तःकरण को जैन धर्म की और मुका दे।
हम अविनय अभक्ति न होजा वास्ते हम नम्रतापूर्वक और दुःख के साथ कहते है कि आज कितनेक प्राचार्य या मुनि महाराजोने गुर्जर प्रान्त को तो अपनि विलायत ही बना रखी है विशेषतः अहमदाबाद सुरत पाटण वडोदरा और पालीताणा को ही पसंद किया जाता है गुजरात में सेंकडो मुनि विचरने पर भी गामडो में उपदेश के अभाव सेंकडो नहीं पर हजारों जैन जैन धर्म से पतित हो जैनेतर समाज में चले गये और जा रहे है । पर उन की परवहा किस को है फिर भी अपने बचाव के लिये यह कह दिया जाता है कि हम क्या करे उन्ह के कर्मों की गति है उन के भाग्य में ऐसा ही लिखा है वस यह ही वाक्य मारवाड मेवाड मालवादि प्रान्तों के लिये समझ लिया जाय कि जहां मुनि विहार के प्रभाव से धर्म की नास्ति होती जा रही है असंख्य द्रव्य से बनाये हुवे जिनालयों कि आशातना हो रही है अन्य धर्मियों के उपदेशक उन पर अपना प्रभाव डाल रहे है जो जैन धर्म के परमोपासक भक्त थे वह ही आज जैन धर्म के दुश्मन बनते जा रहे है इत्यादि क्या इन सब बातें का दोष हम हमारे पूर्वाचार्यों पर लगा सक्ते है ? नहीं कभी नहीं ।
तीसरा यह भी एक कारण है कि पूर्व जमाना में जैनेत्तर